इंदौर। खेती में इन दिनों कई नवाचार हो रहे हैं। उन्नत तकनीक को अपनाकर कम लागत में अधिक लाभ लिया जा रहा है। मशरूम की खेती भी ऐसी ही है, जो कम लागत में अधिक मुनाफा देती है। सांवेर तहसील के ग्राम पालकांकरिया के युवा किसान और कॉलेज विद्यार्थी श्री प्रवीण यादव ने मशरूम की खेती को अपने आय का ज़रिया बना लिया है।
स्नातक द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी श्री प्रवीण यादव (19) ने कृषक जगत को बताया कि मशरूम की खेती स्व प्रेरणा से एक वर्ष पूर्व शुरू की। इस नवाचार के लिए आत्मा परियोजना, इंदौर से मार्गदर्शन जरूर मिला, लेकिन किसी योजना में कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। आयस्टर मशरूम के लिए पहली बार 10 किलो बीज उत्तराखंड से खरीदा। बाद में इंदौर से खरीदा। मशरूम की फसल एक से डेढ़ माह में तैयार हो जाती है। 10 किलो बीज से एक क्विंटल गीला मशरूम उत्पादित होता है। जिसे सुखाने पर 20 किलो रह जाता है। गीला मशरूम 200 रु. और सूखा 1000 रु. किलो बिकता है। उत्पादित गीला मशरूम स्थानीय चोइथराम मंडी में आसानी से बिकता है और हमेशा मांग बनी रहती है।
श्री यादव ने बताया कि मशरूम एक प्रकार का फफूंद है, जिसमें 47 प्रतिशत पोषक तत्व मौजूद रहते हैं। मशरूम की खेती में तापमान का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, 25-30 डिग्री से ज्यादा नहीं होना चाहिए और आर्द्रता 75-90 डिग्री तक होना जरुरी है। दूधिया (मिल्की) मशरूम के लिए 40-50 डिग्री तापमान जरुरी है। मशरूम की खेती मुनाफे वाली है, जिसमें एक चौथाई खर्च करने पर दो गुना से ज्यादा लाभ मिलता है। आयस्टर मशरूम दवाई में ज्यादा उपयोग होता है,जबकि बटन मशरूम की बाजार में मांग अच्छी होने से भाव भी 50 रु. किलो ज्यादा मिलता है। चौथा मशरूम कोडिसेप्स भी है, जिसका बीज 10 हजार रु. किलो मिलता है। जिसकी कीमत दो लाख रु. क्विंटल तक मिलती है। श्री प्रवीण का निकट भविष्य में कोडिसेप्स मशरूम की खेती करने का विचार है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें, मो.: 9174334330