Editorial (संपादकीय)

खेती में जल की उपयोगिता

Share

मानसून के अतिरेक को सहते, सुलझते खरीफ अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच ही गया, अब तो कटाई उपरांत आंकड़े ही बतलायेंगे कि खरीफ कैसा रहा। कृषि की निरंतरता से सभी परिचित है खरीफ के अंतिम पृष्ठ से ही रबी की शुरूआत होने लगती है और एक नया अध्याय सामने प्रगट होने लगता है। सितम्बर माह के अंतिम क्षणों तक वर्षा की फुहारें आने वाले रबी के लिये आवश्यक हो सकती हंै। इस कारण सितम्बर के झल्लों से घबराने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए यह पानी भूमि में पर्याप्त नमी ब्याज के रूप में जमा हो रही है। जिसका लाभ रबी के बीजों के अंकुरण के लिये आवश्यक होगा। तथा सोयाबीन तथा अन्य खरीफ फसलों के लिये भी लाभकारी ही रहेगा। रबी की बुआई के लिये दो-तीन प्रकार की स्थितियां बनती हैं एक खरीफ पड़ती जिसकी बुआई नमी के रहते करनी होती है। दूसरी खरीफ फसल को काटकर मिट्टी में नमी की परख करके पलेवा देकर खेत बनाकर की जाती है और तीसरी धान जैसी फसलें जो देरी से कट पाती हैं। उसके बाद की जाती है। खेतों को बनाकर रबी की फसलों, प्रमुख रूप से गेहूं की बोनी की जाती है। जबसे खरीफ फसलों की क्षेत्र बढ़ा है। उसकी कटाई रखरखाव दावन, उड़ावन के साथ-साथ रबी की बुआई की तैयारी में समय लग जाता है व भूमि की नमी उड़ जाती है और खरीफ के बाद रबी की बुआई में अनचाही देरी हो जाती है। जबकि यह अकाट्य सत्य है कि रबी फसलों को जितने अधिक दिन शरद के मिलेंगे उसके पलने-पुसने की अच्छी व्यवस्था हो सकेगी और अंत में अच्छे उत्पादन की प्राप्ती संभव हो सकेगी। आमतौर पर देखा यह गया है कि खरीफ फसल मुख्य रूप से सोयाबीन को काटने के बाद भूमि में पर्याप्त नमी की कमी हो जाती है। इसे पलेवा देकर खेत में बतर और खेत बनने में 10-15 दिन लग जाते हैं। यदि पलेवा देने के कार्य में थोड़ी सी सावधानी रखकर नियंत्रण में हल्का पानी दें तो निश्चित ही बतर जल्दी आयेगी और खेत बनाकर बोनी की प्रक्रिया भी जल्दी शुरू की जा सकेगी और लम्बे ठंडे दिनों की उपलब्धि गेहंू के लिए संभव हो सकेगी। पूर्व में जब कुओं से या ट्यूबवेल से स्वयं के खर्च पर पानी दिया जाता था तो हर जगह उसके नियंत्रण पर जोर दिया जाता था परंतु जबसे बांधों का निर्माण हुआ नहरों में इफरात जल राशि सामने आई उसका बेरहमी से उपयोग शुरू कर दिया गया। बिना यह विचारे की उस अतिरिक्त जल का मिट्टी पर क्या असर हो सकता है। शासन द्वारा निर्मित बांध या नहरें किसकी हैं, उपलब्ध जल किसका है इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं आया। परिणाम सामने हंै, अंधाधुंध जल उपयोग से खेतों की हालत बिगडऩे लगी और इसका असर कम उत्पादन के रूप में सामने आया देश में जहां -जहां बड़े, मध्यम, छोटे बांधों का निर्माण जिस क्रम में हुआ, परिणाम भी उसी क्रम में सामने आये। अत: बांधों से प्राप्त जल को अपनी विरासत ही माने और फसलों को आवश्यकता के अनुरूप क्रांतिक अवस्था पर ही पानी दिया जाये ताकि उसकी उपयोगिता बढ़ाई जा सके ध्यान रहे जितना सीमित जल उतनी अधिक सिंचित क्षेत्र का विस्तार अर्थात् अधिक से अधिक लोगों को लाभ। उल्लेखनीय है कि बांधों से उपलब्ध जल की शत-प्रतिशत उपयोगिता जो उसके निर्माण के समय लक्षित की गई थी आज तक 60 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाई है। इसके कुछ कारणों में से जरूरत से ज्यादा जल का उपयोग भी एक कारण है। कृषि में जल की उपयोगिता से सभी परिचित हंै इस कारण इसकी प्रत्येक बूंद का हिसाब रखा जाना नितांत आवश्यक है ताकि एक लम्बे सुख भविष्य की कल्पना साकार हो सके।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *